केजरीवाल का संघ या भाजपा के अन्ना
for an english version of this article please visit
An RSS of Kejriwal or Anna of BJP
कई राजनीतिक पार्टियों के पीछे एक सामाजिक, धार्मिक या शैक्षिक आन्दोलन होता है। यह आन्दोलन उस पार्टी को बौद्धिक ख़ुराक़ देता है और पार्टी उस आन्दोलन को विस्तार हेतु एक आकाश देती है। वर्तमान समय में भाजपा और ऱाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मिसाल दी जा सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक आन्दोलन है और भाजपा एक पार्टी है। संघ भाजपा को एक सैद्धान्तिक दर्शन देता है और भाजपा संघ को एक राजनैतिक सुग्राह्यता देती है। इस लेख में इन उल्लिखित नामों के लिए प्रशंसा या आलोचना हरगिज़ नहीं है बल्कि यह तो दार्शनिक और क्रियात्मक पक्षों को दिखाने के लिये किया जाने वाला बौद्धिक प्रयास भर है।
अन्ना महाराष्ट्र में थे। अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में थे। अन्ना का दावा है कि वे वहाँ के एक आन्दोलन थे। और इस दावे की अपनी महत्ता है। केजरीवाल उन्हें दिल्ली लाये और उस आन्दोलन को काम करने का एक बड़ा कैनवस मिल गया। उसके बाद केजरीवाल अलग रास्ते चलते हुए एक पार्टी बन गये जबकि अन्ना वही आन्दोलन बने रहे। दोनों ने मजबूती से अपनी अपनी राहें थाम लीं और कहा कि वे अलग अलग हो चुके हैं।
उससे पहले जब वे दोनों ही आन्दोलन हुआ करते थे तब उन्होंने रामलीला मैदान का एक उपक्रम भी किया था जिसमें अन्ना का बहुत लंबा अनशन हुआ था। सरकार भी सहम गई थी और झोंक में सरकार ने उस आन्दोलन पर प्रहार कर दिया था। लेकिन तब तक दिल्ली के आम आदमी ने खुद को उस अन्ना नामक आन्दोलन से जोड़ लिया था। लोगों को लगा कि सरकार का प्रहार आन्दोलन पर नहीं बल्कि उन पर है। हुआ ये कि जनता ने खुद को आन्दोलन के पीछे लामबन्द कर लिया।
बाद में जनता ने देखा कि पार्टी (केजरीवाल) और आन्दोलन (अन्ना) ने अलग अलग राहें पकड़ ली थीं। पार्टी (केजरीवाल) ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव लड़े और ऐतिहासिक जीत दर्ज़ की। दिल्ली की जीत के बाद पार्टी (केजरीवाल) ने घोषणा की कि उसका अगला पड़ाव महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई है। और सब हैरानी से देखते हैं कि अचानक अगली सुबह महाराष्ट्र के गाँव रालेगण में अन्ना का अनशन शुरू हो जाता है।
क्या है यह सब?
क्या कोई आन्दोलन है जो छुपते छुपाते एक पार्टी की तरफ़दारी कर रहा है? क्या इस छुपम छुपाई का कोई सुनियोजित उद्देश्य है? इन बातों को जनता से छुपाया ही क्यों जा रहा है? वो भी उस जनता से – जिसने उनके लोकपाल के लिए अपना खून और पसीना दोनों ही बहाये थे और इन आम चुनावों में उन्हें ऐतिहासिक जीत दिलाई थी।
दिल्ली, यहाँ तक कि पूरे भारत की जनता जानना चाह रही है कि यदि आप एक आन्दोलन हैं जो किसी एक पार्टी को पाल रहा है तो आपमें यह सब सार्वजनिक करने का साहस क्यों नहीं है। जनता यह भी नहीं जान पा रही है कि यदि आप एक पार्टी हैं और एक आन्दोलन के पके फल खाना चाह रहे हैं तो आपके बड़े बड़े दावों के बावजूद इसे सबके सामने मान लेने की हिम्मत आपमें क्यों नहीं है.
कम से कम भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने सैद्धाँतिक सम्बन्धों की स्वीकारोक्ति का साहस सदैव दिखाया है।
No comments:
Post a Comment